भावुकता, जिंदादिली और जुझारूपन का पर्याय -- महिपाल सिंह मकराना* हाँ वो भावुक है लेकिन वो कभी किसी की भावनाओ के साथ नही खेला

 *भावुकता, जिंदादिली और जुझारूपन का पर्याय -- महिपाल सिंह मकराना*


हाँ वो भावुक है लेकिन वो कभी किसी की भावनाओ के साथ नही खेला



हां वो सीधा सच्चा है लेकिन सच्चाई के रास्ते पर अकेला भी खड़ा रहने का माद्दा रखता है


हाँ वो विचार प्रकटीकरण में जरूर थोड़ा असहज है परन्तु कभी किसी के विचारों के साथ उसने खिलवाड़ नही किया


हां वो क्षात्र परम्परा का ध्वजवाहक है लेकिन अन्य संस्कृतियों व परम्पराओ की रक्षा हेतु भी सदैव अग्रणी रहा है


मैं बात कर रहा हूँ भोले, भावुक, कौम समर्पित जुझारू भाई महिपाल सिंह मकराना की...


भारतीय प्रशासनिक सेवा के माध्यम से देश सेवा की चाह रखने वाला राजस्थान विश्विद्यालय का गोल्ड मेडलिस्ट इस युवा का छात्र जीवन से ही "अपने लिए नही जीकर अपनो के लिए जीना" फलसफा रहा है।


चाहे वह 20 वी सदी के अंतिम दौर में जयपुर के ह्र्दयस्थल सांगानेरी गेट जुबैदा फ़िल्म में जोधपुर महाराजा के व्यक्तित्व के गलत चित्रण को लेकर विरोध आंदोलन हो


चाहे राजपूत छात्रों के मंदिर राजपूत छात्रावास जयपुर पर पुलिसिया हमले के विरुद्ध आंदोलन कर छात्रहित में स्वयं की छात्रावास से कुर्बानी देकर अन्य छात्रों के अधिकारों की रक्षा करना हो


चाहे 21 सदी के शुरुआत में नारी अस्मिता हेतु प्राण न्योछावर करने वाले महाराव शेखाजी की मूर्ति तोड़ने के विरोध उपजे आंदोलन में जयपुर की धरती पर लोकतांत्रिक आंदोलन के माध्यम से छात्र शक्ति का नेतृत्व कर सरकार को झुकाना हो


चाहे सामाजिक न्याय मंच की उस नवीन क्रांति में जमीनी स्तर पर मेहनत कर मंच को मजबूती प्रदान कर राजस्थान के आमजन को तीसरा विकल्प देना हो


21 वी सदी के छटे वर्ष में ही जब राजपूत कौम स्वयं को मजबूत संगठन के अभाव में नेतृत्वविहीन समझ रही थी तब आधुनिक समय के महाराणा प्रताप लोकेंद्र सिंह जी कालवी की रहनुमाई में बने 40 वर्ष से कम उम्र के युवाओं के पदाधिकार वाले संग़ठन श्री राजपूत करणी सेना का पहला जयपुर जिलाध्यक्ष बन सेना की जड़े राजस्थान की राजधानी जयपुर में जमाकर पूरे राज्य के राजपूतो की उम्मीद की किरण बनना हो।


इसके बाद तो लगातार इस कौम के लिए किए गए आंदोलनों का जिक्र करने बैठू तो सुबह से शाम और शाम से सुबह हो जाये परन्तु भाईं के कार्यो का विवरण फिर भी अधूरा ही रहे।


इतना ही कहूंगा कि *युवा पीढ़ी में समाज का यह एकमात्र भावुक सेनापति है जो हमेशा स्वयं का नफा नुकसान सोचे बिना हरावल दस्ते में खड़ा मिलता है,, ऐसे मजबूत नेतृत्व को जिंदा रखना हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी है *


उड़ान वालो उड़ान पर वक्त भारी है,

अबके परो की नही होसलो की बारी है,


दुआ करना हिम्मत सलामत रहे इनकी 

क्यूक़ी यही वो चिराग है जो सब आंधियों पर भारी है

Mahipal Singh Makrana 


✍🏻 रघुराज सिंह सबलपुरा

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